किन अल्फाज़ों से मांगें ऐ बेटी हम तुमसे माफी,
कुछ कहने से डर आज मेरी रूह भी.
कहने को इस मुल्क में हर धर्म के इंसान रहते हैं,
पर हकीकत में जिस्म के भूखे हैवान रहते हैं.

फर्क नहीं पड़ता है कि किस जाति-धर्म या कौम की थी,
पर किसी की आंखों में खटकती हुई मुस्कुराती हुई जान थी.
जब दरिंदों ने तुम्हें बेरहमी से नोंचा होगा,
क्या एक बार भी उनका दिल नहीं शर्म से कचोटा होगा.

कैसे भूल गए होंगे वे अपनी मां-बहन-बेटी को,
तब भी क्या यही करते, इनमें से वहां कोई होती तो.
घिन आती है खुद को उस समाज का हिस्सा कहते हुए,
जी रही हैं बेटियां दरिंदों की नजरों को सहते हुए.

रूह कांप जाती है जब सोंचते हैं वह खौफनाक मंजर,
कैसे तुम तड़पी होगी हैवानियत के उस पल-पल.
माफ न करना ऐ लाडो तुम इस जहां को,
कितना गिर गया है इंसान बताना जरूर तुम ऊपर खुदा को.

करना तू भी उनसे ये गुजारिश,
हर दरिंदा बने चांद सी हसीं बेटी का वारिस.
और क्या कहें माफी के लिए अल्फाज़ नहीं हैं,
सुधर जाने वालों में से शायद ये समाज नहीं है.

10 COMMENTS

  1. Aise logo ko aisi saza mile ….rooh kaanp Jaye….🤬🤬🤬

    Dusre Aisa ku kratya krne se phle hazar bar soche ….

  2. ऐसे लोगों को सीधा फांसी देनी चाहिए
    No Police action No Court mattered

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