पितृपक्ष का प्रारंभ इस साल 10 सितंबर यानि आज से शुरू हो रहा है. पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए जो भी कर्म श्रद्धा से किया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है. इस साल पितरों के श्राद्ध कर्म 10 सितंबर से 25 सितंबर तक होंगे. श्राद्ध पितरों की तिथियों के अनुसार किया जाता है तो आइए जानते हैं तर्पण की विधि और पितरों की प्रार्थना के मंत्र के बारे में-
पितृ प्रार्थना मंत्र
पहला मंत्र – पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:
प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।

दूसरा मंत्र – ॐ नमो व :पितरो रसाय नमो व:पितर: शोषाय नमो व:पितरो जीवाय नमो:
व:पीतर: स्वधायै नमो व:पितर: पितरो नमो वोगृहान्न: पितरो दत्त:सत्तो व:।।

तर्पण विधि
पितृ पक्ष में हर दिन पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए. तर्पण के लिए आपको कुश, अक्षत, जौ और काला तिल का उपयोग करना चाहिए. तर्पण करने के बाद पितरों से प्रार्थना करें, ताकि वे संतुष्ट हों और आपको आशीर्वाद दें. देवताओं के लिए आप पूर्व दिशा में मुख करके कुश लेकर अक्षत से तर्पण करें.

अपने वचनों से पितरों को करें तृप्त
श्राद्ध कर्म करने के लिए धन नहीं है तो अपने पितरों को अपने वचनों से भी तृप्त कर सकते हैं. पितरों से प्रार्थना करते हुए कहें कि हे पितृगण! आपके पास अपने सभी पितरों के लिए श्रद्धा है. आप अपने श्रद्धापूर्ण वचनों से आप सभी को तृप्त कर रहे हैं, आप सभी इससे तृप्त हों.

श्राद्ध में क्या नहीं करें ?
रात में कभी भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि रात को राक्षसी का समय माना गया है. संध्या के वक़्त भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. श्राद्ध में मसूर की दाल, मटर, राजमा, कुलथी, सरसों, बासी भोजन का प्रयोग करना वर्जित है. श्राद्ध के वक़्त घर में तामसी भोजन नहीं बनाना चाहिए. इस समय हर तरह के नशीले पदार्थों के सेवन से दूरी बनानी चाहिए. पितृ पक्ष के दिनों में शरीर पर तेल, सोना, इत्र और साबुन आदि का उपयोग नहीं करें. श्राद्ध करते समय क्रोध, कलह और जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.

श्राद्ध में क्या करना चाहिए ?
पिता का श्राद्ध पुत्र द्वारा किया जाना चाहिए. पुत्र की अनुपस्थिति में उसकी पत्नी श्राद्ध कर सकती है. श्राद्ध में बनने वाले पकवान पितरों की पसंद के होने चाहिए. श्राद्ध में गंगाजल, दूध, शहद, और तिल का उपयोग सबसे ज़रूरी माना गया है. श्राद्ध में ब्राह्मणो को सोने, चांदी, कांसे, तांबे के बर्तन में भोजन कराना सर्वोत्तम हैं. श्राद्ध पर भोजन के लिए ब्राह्मणों को अपने घर पर आमंत्रित करना चाहिए. पितर स्तोत्र का पाठ और पितर गायत्री मंत्र का जाप दक्षिणा मुखी होकर करना चाहिए. कौवे, गाय और कुत्ते को ग्रास अवश्य डालें इसके बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है.

(Disclaimer: ऊपर दी गई जानकारियां धार्मिक मान्यताओं-परंपराओं के अनुसार हैं. Readmeloud इनकी पुष्टि नहीं करता है.)

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